Saturday, 19 March 2011

दूध की बोतलों से फैलता जहर


सुनने में भले ही विचित्र लगे पर यह सच है कि बोतल द्वारा दुग्धपान से बच्चों को कई प्रकार की बीमारियॉ लगती हैं जिनमें से कुछ पूर्णरुपेण घातक भी हैं।
स्तन पान करे लेकर हमारे समाज में तरह-तरक ही भ्रान्तियॉ फैली हैं जिनमें करीब-करीब सारी ही निराधार हैं 
भ्रान्तियों व पूर्वाग्रहों से सशंकित मॉं जब आशाभरी दृष्टि से समाधान की बात सोचती है तो उसको दिखती है बोतल,जो उसके अनुसार सरलता से उपलब्ध हो जाती है, बनाने में सरल व दूध पिलाने में आसान होती है। दुर्भाग्य से वह यह नहीं जानती कि अपने नन्हे-मुन्हे को वह प्यार से उंगली पकड़ कर मृत्यु की ओर ले जा रही है।
यहॉं स्वास्थ्य विभाग व उससे सम्बद्ध जानकर लोगों की अक्षमता भी प्रकाश में आती है, जो एक तो संख्या में कम होने के कारण सबको एवम् समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते, दूसरे जब भी ऐसीं समस्याग्रस्त माताओं से मिलते हैं तो घंटो सिर खपाने की अपेक्षा एक पर्ची पर किसी सूखे दूध के डिब्बे का नाम लिखना अधिक श्रेयस्कर समझते हैं और इस प्रकार एक निर्मूल धारणा पर प्रमाणिकता की मोहर लगा देते हैं।
उनकी इस मानसिकता के पीछे होता है, पाउडर दूध बनाने वाली कम्पनियों के प्रचार, उनके प्रतिनिधियों के प्रयास व उनके द्वारा प्रदत्त इन चीजों के लिये उपलब्ध कराये गये प्रलोभन।
बोतल पान हानिकारक क्यों ?
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  • एक सामान्य व्यक्ति का तर्क होता है कि आखिर बोतल पान हानिकारक क्यों होता है क्योंकि बोतल से तो बच्चे को आहार पहुँचाया जाता है।
  • यह सही है कि आदर्श रूप से यदि बोतल का प्रयोग किया जाये तो बच्चों के मनोविकास व व्यक्तित्व विकास में कुछ अवरोधों के अतिरिक्त कोई विशे फर्क नहीं होता।
  • हालांकि ये देखा गया है कि बोतल पीने वाले बच्चों में अंगूठा चूसने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। इन बच्चों में कभी-कभी स्पर्श की क्षमता भी कुंठित हो सकती है। ये बच्चे आगे चलकर जिददी, तोड-फोड़ करने वाले बच्चों के रूप में विकसित हो सकते हैं। स्वभाव से ये कम भावुक, निरंकुश व माता-पिता के प्रति कम संवेदनशील होते हैं।
  • इस सबके अतिरिक्त बोतल पान से बाहरी गन्दगी व सूक्ष्म जीवाणुओं की बच्चे में पहुंचने की सम्भावनायें बहुत रहती हैं। फलस्वरूप ये बच्चे दस्तों के रोग से पीड़ित हो जाते हैं। पानी के अभाव में, उचित चिकित्सा न हो पाने पा इनकी मृत्यु भी हो सकती है।
  • बोतल से दूध पिलाना अगर जरुरी ही हो तो बोतल से दूध पिलाते समय बोतल को हर बार साबुन से धोकर फिर पन्द्रह मिनट तक उबाल कर जीवाणु रहित किया जाना चाहिये।
  • पिलाने से बचे हुये दूध को तुरन्त ही फेंक दिया जाना चाहिये।
  • पर इन सब का पालन पढ़ी-लिखी मातायें भी नहीं कर पातीं। अक्सर एक बार बोतल को साफ करके दूध भर लिया जाता है उसी को बार-बार से पिलाया जाता रहता है।
  • दूध जीवाणुओं की वृद्धि के लिये अति उपयुक्त माध्यम होता है, विशेकर यदि वह उपयुक्त तापक्रम पर किसी ऐसे बर्तन में बोतल में रखा रहे जिसमे हवा सुगमता से आ-जा सकती हो।
  • आदतन कुछ मातायें दूध पिलाते समय या उससे पूर्व निपिल को हाथ से छूतीं हैं, जिससे भी बाहर की गन्दगी बोतल के अन्दर पहुँचती रहती है।
  • कभी-कभी कुछ बड़े बच्चों को उनकी मातायें दूध बोतल में भरकर उनके हाथों में पकड़ा देतीं हैं, जिसे वे खेल-खेल में बीच-बीच में भूमि पर भी गिराते रहते हैं और वही बोतल फिर उठा कर उनके मुंह में डाल दी जाती है, जिसके साथ थोड़ी-बहुत गन्दगी हर बार बच्चे के अन्दर पहुंचती रहती है। इससे जब दस्त आने लगते हैं तो इसका दोदांत निकलने को दिया जाता है, हालांकि दांत निकलने का दस्तों से दूर-दूर का भी सम्बंध नहीं होता है।
  • यदि बोतल पिलाते समय बोतल में दूध के स्तर का ध्यान न रखा जा पाये, जैसा कि अधिकतर देखा जाता है, तो दूध पीते समय काफी हवा बच्चे के पेट मे आसानी से चली जाती है। फलस्वरूप बच्चे का पेट फूल जाता है, उनके पेट में दर्द होता है और वे चीखत-चिल्लाते हैं। जब कभी ये वायु वेग के साथ पेट से बाहर आती है तो अपने साथ बहुत सारा दूध लेकर आती है क्योंकि बच्चों में इस क्रिया को रोकने वाला संकुचक (स्फिन्क्टरपूर्णरूप से विकसित नहीं होता। इस क्रिया के बाद स्वभावत: बच्चा गहरी सांस लेता है और ये सारा दूध सीधा फेफड़ों में चला जाता है,जिससे भयंकर न्यूमोनिया हो सकता है। जिसमें बच्चे की जान भी जा सकती है।
  • दूग्ध पान कराती एक माँ 
  • बोतलों से दूध पिलाने वाली मातायें बहुत बार सूखे दूध का प्रयोग भी करती हैं। वस्तुत: एक बोतल दूध (२००मिली) बनाते समय इतने पानी में कम से कम सात चम्मच दूध मिलाया जाना चाहिये। पर दूध मंहगा होने के कारण या अज्ञानतावश ये मातायें एक बोतल में एक या दो चम्मच दूध मिलाकर ही सन्तो कर लेती हैं और ये"सफेद पानी" पिला-पिला कर अपने बच्चों को अनजाने ही कुपोण के हाथों में सौंपती जाती हैं।
मैया यशोदा व कान्हा 
यदि आप भी अपने बच्चे को बोतल के सहारे रखने की सोचतीं हैं तो सावधान! इनसे बचिये, यदि आपके बच्चे को किसी कारण से "ऊपर के दूध" की आवश्यकता है तो उसे साफ चम्मच कटोरी से दूध पिलायें और इन मासूम सी दिखने वाली जहरीली बोतलों से अपने ऑंख के तारे को बचायें.........

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