Saturday, 19 February 2011

Hindizen – निशांत का हिंदीज़ेन ब्लॉग सर्वश्रेष्ठ कथाएँ, प्रेरक प्रसंग, संस्मरण, लेख, गीत, और कविताएं

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अच्छा और बुरा गुलाम

एक बादशाह ने दो गुलाम सस्ते दाम में खरीदे. उसने पहले से बातचीत की तो वह गुलाम बड़ा बुद्धिमान और मीठा बोलने वाला मालूम हुआ. जब होंठ ही मिठास के बने हुए हों तो उनमें से शरबत के सिवाय और क्या निकलेगा? मनुष्य की मनुष्यता उसकी वाणी में भरी हुई ही तो है. बादशाह जब इस गुलाम की परीक्षा कर चुका तो उसने दूसरे को पास बुलाकर देखा तो पाया कि यह बहुत बदसूरत और गंदा है. बादशाह इसके चेहरे को देखकर खुश नहीं हुआ परन्तु उसकी योग्यता और गुणों की जांच करने लगा. पहले गुलाम को उसने नहा-धोकर आने के लिए कह दिया और दूसरे से कहा – “तुम अपने बारे में कुछ बताओ. तुम अकेले ही सौ गुलामों के बराबर हो. तुम्हें देखकर उन बातों पर यकीन नहीं होता जो तुम्हारे साथी ने तुम्हारे पीठपीछे कही हैं.”
गंदे गुलाम ने जवाब दिया – “उसने यदि मेरे बारे में कुछ कहा है तो सच ही कहा होगा. यह बड़ा सच्चा आदमी है. इससे ज्यादा भला आदमी मैंने और कोई नहीं देखा. यह हमेशा सच बोलता है. यह स्वभाव से ही सत्यवादी है इसलिए इसने जो मेरे संबंध में कहा है यदि वैसा ही मैं इसके बारे में कहूं तो झूठा दोष लगाना होगा. मैं इस भले आदमी की बुराई नहीं करुंगा. इससे तो यही अच्छा है कि मैं खुद को दोषी मान लूं. बादशाह सलामत, हो सकता है कि वह मुझमें जो ऐब देखता हैं वह मुझे खुद न दीखते हों।”
बादशाह ने कहा – “मैं तो चाहता हूं कि तुम भी इसकी कमियों का वैसा ही बखान करो जैसा इसने तुम्हारी कमियों का किया है जिससे मुझे इस बात का यकीन हो जाये कि तुम मेरी खुशी और सलामती चाहते हो और मुल्क को चलाने में मेरे काम आ सकते हो.”
गुलाम बोला – “बादशाह सलामत, इस गुलाम में सादगी और सच्चाई है. बहादुरी और बड़प्पन भी ऐसा है कि मौका पड़ने पर जान तक न्यौछावर कर सकता है। वह घमंडी नहीं है और अपनी गलतियों को खुद ही ज़ाहिर कर देता है. अपनी गलतियों को सामने लाना और ऐब ढूंढना हालांकि बुरा है तो भी वह दूसरे लोगों के लिए तो अच्छा ही है.”
बादशाह ने कहा – “अपने साथी की तारीफ़ में अति न करो और दूसरे की तारीफ़ करके खुद को तारीफ़ के काबिल नहीं बनाओ क्योंकि यदि मैंने तुम्हारा इम्तिहान लेने के लिए इसे बुला लिया तो तुम्हें शर्मिंदा होना पड़ेगा.”
गुलाम ने कहा – “नहीं, मेरे साथी की अच्छाइयां इससे भी सौ गुना हैं. जो कुछ मैं अपने दोस्त के बारे के संबंध में जानता हूं यदि आपको उसपर यकीन नहीं तो मैं और क्या अरज करूं!”
इस तरह बहुत सी बातें करके बादशाह ने उस बदसूरत गुलाम की अच्छी तरह परीक्षा कर ली और जब पहला गुलाम स्नान करके बाहर आया तो उसको अपने पास बुलाया. बदसूरत गुलाम को वहां से विदा कर दिया. उस सुंदर गुलाम के रूप और गुणों की प्रशंसा करके कहा – “पता नहीं, तुम्हारे साथी को क्या हो गया था कि इसने पीठ-पीछे तेरी खूब बुराई की!”
सुंदर गुलाम ने चिढ़कर कहा – “बादशाह सलामत, इस नामुराद ने मेरे बारे में जो कुछ कहा उसे ज़रा तफ़सील से मुझे बताइये.”
बादशाह ने कहा – “सबसे पहले इसने तुम्हारे दोगलेपन का जिक्र किया कि तुम सामने तो दवा हो लेकिन पीठ-पीछे दर्द हो.”
जब इसने बादशाह के मुंह से ये शब्द सुने तो इसका पारा चढ़ गया, चेहरा तमतमाने लगा और अपने साथी बारे में उसके मुंह में जो आया वह बकने लगा. वह बदसूरत गुलाम की बुराइयां करता ही चला गया तो बादशाह ने इसके होंठों पर हाथ रख दिया और कहा – “बस करो, हद हो गयी. उसका तो सिर्फ बदन ही गंदा है लेकिन तुम्हारी तो रूह भी गंदी है. तुम्हारे लिए तो यही मुनासिब है कि तुम उसकी गुलामी करो.”
[याद रखो, सुन्दर और लुभावना रूप होते हुए भी यदि मनुष्य में अवगुण हैं तो उसका मान नहीं हो सकता। और यदि रूप बुरा पर चरित्र अच्छा है तो उस मनुष्य के चरणों में बैठकर प्राण विसर्जन कर देना भी श्रेष्ठ है।]
जलालुद्दीन रूमी की किताब ‘मसनवी’ से लिया गया अंश. अन्य कथाएं यहां

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